एक अरज
मेरे सपनो में हौसलों के रंग
बस इतना करम करे मेरा भगवान्
न आसमान से वफ़ा में हो कमी
और न ज़मीन को जफ़ा दे कदम
कॉपीराइट 2013 @सोमक्रित्य
साहब की जय हो
सुबह की चुस्की
फिर कभी
इन असुयन की पीर
2011 in review
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Here’s an excerpt:
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डाल डाल पर नया साल
माया बड़ी ठगनी
हैपी एंडिंग
यही तो है लोचा
जब भी कुछ हो जाता है बुरा
जब भी कोई बजा दे बेसुरा
हम लेते है गाँधी जी का नाम कहते है
उन्होंने ऐसा तो नहीं होगा सोचा
अरे उन्होंने गर होता भी यह सोचा
तो भी होता यही लोचा
राज कर रहे भ्रष्ट , सब जगह बेईमानी
गुपचुप बिकती डॉलरों में देश की कहानी
कोई कुकर्मी छूटा कोई गया पकड़ा
कोई पैसे के दम पर गलत बात पर अकड़ा
सरकार और ओपोज़िशन के नित नए नाटक
घूस बिना नहीं खुलते सरकारी फाटक
ग्लोबल वार्मिंग ने अलग उड़ा रखे है होश
यह ऊपर से नहीं आया हमारा ही है दोष
उसपर ओबामा की गुहार भारत ना जाओ
भारतियों जितना पड़ो पर वह इलाज ना कराओ
खैर उनकी छोड़ो जैसी उनकी विश
पर यहाँ आते तो पता चलता
चिकन टिक्का नहीं हमारा नेशनल डिश
आते है वापस अपने जन्मभूमि पर जिसका है बुरा हाल
सब तरफ तबाही फैली जाने कैसे बीतेगा यह साल
सब के सब घूम रहे हुए बदहवास
गन्दा मैला पानी और ले रहे पोल्यूटेड श्वास
कहा तक बचोगे किस किस से बचोगे , कब जागोगे
सुधरो और सुधारो , अपनी गलतियों से कब तक भागोगे
कल होगा तो ना कुछ और कर पाओगे
वरना वक़्त से पहले सब धुल हो जाओगे
नहीं , गाँधी जी ने नहीं यह सब सोचा
पर हम भी नहीं सोच रहे यही तो है लोचा